देश की वर्तमान परिस्थितियों पर सर कार्यवाह भय्या जी जोशी का वक्तव्य
16.03.2013
सरकार की अदूरदर्शितापूर्ण नीतियों से बढ़ते आर्थिक संकट और कृषि, लघु उद्योग व अन्य रोजगार आधारित क्षेत्रों की बढ़ती उपेक्षा
आज देश के लिए चिन्ता का कारण बन कर उभर रही है। देश के उत्पादक उद्योगों की
वृ़द्धि दर आज स्वाधीनता के बाद सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुँच गयी है। इस गिरावट से
फैलती बेरोजगारी, निरंतर बढ़ रही महंगाई,
विदेश व्यापार में बढ़ता घाटा और देश के उद्योग,
व्यापार व वाणिज्य पर विदशी कम्पनियों का बढ़ता
अधिपत्य आदि आज देश के लिए गम्भीर आर्थिक सकंट व पराश्रयता का कारण सिद्ध हो रहे
हैं। साथ ही बढ़ते राजकोषीय संकट से, कृषि सहित रक्षा, विकास व लोक कल्याण के
लिए संसाधनों का बढ़ता अभाव भी आज गम्भीर रूप से चिंतनीय है। कृषि की उपेक्षा से
किसानों द्वारा आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं, अधिकाधिक किसानों का अनुबंध पर कृषि के लिए बाध्य होने और सरकार की भू
अधिग्रहण की विवेकहीन हठधर्मिता आदि से आज करोडों किसानों का जीवन संकटापन्न होने
के साथ ही, देश की खाद्य सुरक्षा भी
गम्भीर रूप से प्रभावित हो रही है। ऐसे में, विविध बहुपक्षीय व्यापारिक समझौते एवं मुक्त व्यापार समझौते
भी अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में सरकार को देश हित के अनुरूप निर्णय करने के
विरूद्ध बाध्य कर, विकल्प हीनता की स्थिति
खड़ी कर रहे हैं, जो अत्यन्त गंभीर चिन्ता
का विषय है। ऐसे में आज स्वावलम्बी आर्थिक विकास के लिए, वैकल्पिक आर्थिक पुनर्रचना की पहल की अविलम्ब आवश्यकता है।
आज गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियाँ जहाँ हमारी अगाध श्रद्धा का केन्द्र हैं,
वहीं वे करोड़ों लोगों के जीवन का आधार होने के
साथ-साथ, देश के बहुत बड़े क्षेत्र
के पर्यावरणीय तंत्र की भी मूलाधार हैं। इन नदियों के प्रवाह को अवरूद्ध करने के
सरकारों के प्रयास, उन्हें प्रदूषण मुक्त
रखने के प्रति उपेक्षा एवं उनकी रक्षार्थ
चल रहे आन्दोलनों की भावना को न समझते हुए उनकी उपेक्षा भी गम्भीर रूप से चिन्तनीय
है। संघ इन सभी जन आन्दोलनों का स्वागत करता है।
कावेरी जैसे नदी जल विवाद भी अत्यन्त चिन्ताजनक हैं। राज्यों के बीच नदी जल
विभाजन व्यापक जन हित में, न्याय व सौहार्द
पूर्वक होना आवश्यक है। इसी प्रकार प्राचीन रामसेतु, जो करोडों हिन्दुओं की श्रद्धा का केन्द्र होने के साथ-साथ,
वहाँ पर विद्यमान थोरियम के दुर्लभ भण्डारों को
सुरक्षित रखने में भी प्रभावी सिद्ध हो रहा है। उसे तोड़ कर ही सेतु-समुद्रम योजना
को पूरा करने की सरकार की हठधर्मिता, देश की जनता के लिए असह्य है। पूर्व में भी वहां से परिवहन नहर निकालने हेतु
सरकार द्वारा उसे तोडने के प्रयास आरंभ करने पर, उसे राम भक्तों के प्रबल विरोध के आगे झुकना पडा है। आज
शासन द्वारा पचौरी समिति के द्वारा सुझाये वैकल्पिक मार्ग को अपनाने के प्रस्ताव
को अस्वीकार कर देने के शपथ पत्र से पुनः उसकी नीयत पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है।
इसलिए हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि, जन भावनाओं का सम्मान करते हुए उसे तोड़ने का दुस्साहस न करे। अन्यथा उसे पुनः
प्रबल जनाक्रोश का सामना करना पड़ेगा। ऐसे सभी सामयिक घटनाक्रमों के प्रति सरकार को
जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए देश हित में व्यवहार करना चाहिए।
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